श्री:
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद्वरवर मुनये नमः
श्लोक ९
कर्माधिने वपुषि कुमति: कल्पयन्नात्मभावं
धु:खे मग्न: किमिति सुचिरं दूयते जन्तुरेष: ।
सर्वं त्यक्त्वा वरवरमुने! सम्प्रति त्वत्प्रसादात्
द्दिव्यं प्राप्तुस्तव पदयुगं देहि मे सुप्रमातं ।। ९ ।।
शब्दश: अर्थ
हे वरवर मुने! : ओ श्रीमनवाल महामुनि स्वामीजी!
ईष जन्तु : यह आत्मा जो हमारे लिये समर्पित है
कर्मा धिने : अपने पूर्व कर्म के कारण
वपुषि : इस शरीर में
आत्म भावं : उयाह कल्पना करना कि यह स्व आत्मा है
कल्पय : इस भावना के साथ
कुमति: : और दुषित ज्ञान
धु:खे मग्न: : सांसारिक जीवन के दु:ख में डुबता हुआ
किं : क्यों
दूयते : वह कष्ठ भोग रहा है?
इति (मत्वा) : उस तरह सोचना
सर्वं : मुझे योग्य करना ताकी इस माया को छोड़ दू
त्यक्त्वा : और यह सब छोड़ना
सम्प्रति : इसी समय
त्वत्प्रसादाद्दिव्यं पदयुगं प्राप्तुस्तव : मुझे योग्य करना आपके चरण कमल को पा सँकु
त्वत्प्रसादा : आपके स्वाभाविक दया से
मे : मेरे लिये
सुप्रमातं : इस शुभ दिन में (मुक्त होने के लिये)
देहि : आपको देना होगा
अर्थ:
“कर्माधिने” से “दूयते जन्तुरेष:” तक श्रीवरवर मुनि स्वामीजी अपने शिष्य के कल्याण हेतु सोचते है ऐसा बताया गया है। व्याख्या के लिये “मत्वा” शब्द “इति” से जोड़ा गया है। इससे वह श्रीवरवर मुनि स्वामीजी से यह निवेदन करते है कि दु:ख, डरावनी अंधेरी रात का अपनी कृपा से अन्त कर दे।
हिंदी अनुवाद – केशव रान्दाद रामानुजदास
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