उत्तरदिनचर्या – श्लोक – १३

श्री:
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद्वरवर मुनये नमः

परिचय

श्लोक १२                                                                                                           श्लोक १४

श्लोक १३

अतः ब्र्थयां अनुग्नाप्य कृत्वा चेत: सुभाश्रये।
सयनीयम् परिष्कृत्य सयानं संस्मरामि तम||

शब्द से शब्द

अतः          : जैसे पूर्व निर्दिश्ट किया गया हैं, शिष्यों को व्यक्तिगत शिक्षण के दो जामों के पश्चात,
ब्र्थयां         : शिष्य
अनुग्नाप्य  : प्रस्थान करने के पश्चात
सुभाश्रये     : आँखों और मन को आकर्षित करने वाले भगवान के दिव्य रूप में
चेत:कृत्वा   : अपनी धारणा बढ़ा कर (उस पर द्यान कर)
सायनीयं     : बिस्तर पर
परिष्कृत्य   : शयन करने से सुशोबित कर
सयानम     : विश्राम करना
तम           : उन स्वामी मणवाला मामुनि
संस्मरामी  : मेरे गहरी द्यान में हैं

अर्थ

“कृत्वा चेत सुभाश्रये” से यहाँ रात में भगवान पर किये गए द्यान की प्रस्ताव हैं।

“ततः कनक पर्यङ्के “, प्रकाशित करता हैं की मामुनिग़ल भगवद द्यान की प्रति उचित आसन से उठ कर, स्तोत्र में मग्न शिष्यों को कटाक्ष करते हैं, और उनकी प्रस्थान करने के बाद बिस्तर को, भगवान पर धारणा बढ़ाते हुए अलंकृत करते हैं।

इन महामुनि पर द्यान करते है येरुम्बियप्पा। आदिशेष के अवतार होने के कारण, महामुनि के अप्राकृत दिव्य रूप निद्रावस्था में दुगुनी और इसलिए निर्विग्न द्यान के हेतु हैं।

महामुनि केलिए सुभाश्रय भगवान की दिव्या मंगला रूप है और इस प्रकार अप्पा केलिए सुभाश्रय महामुनि की दिव्या मंगला रूप हैं।

हम यह मान सकते हैं की महामुनि जो यतीन्द्र प्रवणर् हैं भगवान पर द्यान करते हैं, यतीन्द्र स्वामी रामानुज के प्रसन्नता केलिए। वैसे, येरुम्बियप्पा के आराधित भगवान श्री राम जिनके निर्बंध के कारण महामुनि येरुम्बियप्पा को स्वीकार किये, उनके प्रसन्नता केलिए सौम्यजामातृयोगीन्द्र श्री महामुनि पर येरुम्बियप्पा द्यान करते हैं।

श्री राम की यह आज्ञा यतीन्ध्रप्रवणप्रभाव और अप्पा की वरवरमुनि सतक में प्रस्तुत हैं।

हिंदी अनुवाद – केशव रान्दाद रामानुजदास

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