उत्तरदिनचर्या – श्लोक – १०

श्री:
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद्वरवर मुनये नमः

परिचय

श्लोक ९                                                                                                               श्लोक ११

श्लोक १०

या या वृत्तीर्मनसि मम सा जायतां संस्मृतिस्ते
यो यो जल्पस्स भवतु! विभो! नामसंकीर्तनं ते ।
या या चेष्टा वपुषि भगवन्! सा भवेद्वन्दनं ते
सर्वं भूयाद्वरवरमुने! सम्यगाराधनं ते ।।१०  ।।

शब्दश: अर्थ

हे वरवर मुने!   : ओ श्रीवरवर मुनि स्वामीजी!
मम                : मेरे पहिले के जन्म और कर्म की दशा के कारण जो मेरी समझ है
जायतां           : जिस कुछ करणों से भाग्यवान है
सा वृत्ती:        : वह सभी ज्ञान,
ते                   : (आशीर्वाद के बारे मे सोचते हुये) आपका,
संस्मृति:         : आपके सुशोभित और मनोहर यादे,
जायतां           : मेरे लिए  प्रगट होइये /प्राप्त होइये
हे विभो!          : मेरे प्रिय स्वामी!
मे                  :  मेरे तक
या: या: जल्पा:: जो भी पवित्र शब्द है वह आपके स्तुति के लिये हीं है,
जायतां           : वह जो लौटाया जा सकता है (अन्य इंद्रियों के जरिये),
सा:                : वह सभी शब्द
ते                  : जो आपके ज्यादा बढ़ाई करने लायक है
जल्पा:           : शब्दों के रूप में
जायतां          : मेरे लिये प्रगट / उत्पन्न होना।
हे भगवन् !     : हे स्वामि
मम               : मेरा
वपुषि            : इस शरीर में जो हमेशा कुछ कार्य में लगा रहता है,
आ या चेष्टा   : उन कार्यों का प्रबन्ध करना,
ते                  : उनके पूजन करने योग्य
वन्दनं           : दंडवत करने के अवस्था मे
जायतां          : प्रगट / उत्पन्न होना मेरे लिए
सर्वं               : अभी तक जो कुछ सुना गया और जो न सुना गया वह मेरे कर्मो सा उत्पन्न होता है
ते                  : आप के लिए
सम्यगाराधनं : अच्छी प्रार्थना के रूप मे जो आप को अलंकृत करे
भूयात           : मेरे लिए

अर्थ:-

मेरे मन में जो भी बुरे विचार है उनको आपकी कृपा से अच्छे सोच में परिवर्तन कर देना। मेरे जुबान से जो व्यर्थ बातें निकलती है उनकी आपकी कृपा से मेरे द्वारा आपके लिये गाई हुई सुंदर गाथाओं मे परिवर्तित हो जाये । मेरे में जो बुरी आदते है आपको दण्डवत कर अच्छी बन जाये। इस तरह उनकी प्रार्थना चलती है। “जायतां” शब्द हर वाक्य में दो बार समझाया गया है। जायतां शब्द रूप में कई अर्थ देता है। यहाँ पहिले अर्थ में आता है अर्हम = योग्य। तत् पश्चात प्रार्थना में उसका अर्थ आता है। इस श्लोक का शब्दश: अर्थ में समझा जा सकता है। अथवा हम इसका अर्थ इस तरह भी ले सकते है कि मेरे चित्त में जो भी विचार है वह आपके नाम के प्रशंसा के लिये और मेरे शरीर से जो भी कार्य हो वह आपके कैंकर्य हेतु हो।

हिंदी अनुवाद – केशव रान्दाद रामानुजदास

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