पूर्वदिनचर्या – श्लोक – १७

श्री:
श्रीमते शठकोपाय नमः
श्रीमते रामानुजाय नमः
श्रीमद्वरवर मुनये नमः

परिचय

श्लोक  १६                                                                                                                 श्लोक  १८

श्लोक  १७

अथ रंगनिधिं सम्यगभिगम्य निजं प्रभूम् ।
श्रीनिधानं शनैस्तस्य शोधयित्वा पदव्दयम् ॥ १७ ॥

अथ                   –   सुबह के कार्यों को सम्पन्न करके मठ में पहुँचे ,
निजं                  –   तिरुवाराधन करने की वजह से ,
प्रभुं                    –   भगवान ,
रंगनिधिं             –   अरगंनगरप्प, जो श्रीरंगम के निधि है, वे मठ में विराजमान है,
सम्यगभिगम्य   –   निष्ठा के साथ व्यवस्थित रीति से साष्ठांग करना ,
तस्य पदद्वयम  –   पवित्र श्रीचरण ,
शोधयित्वा         –   तिरुमंजन करके तिरुवाराधान करना ।

शाण्डील्य स्मृति में कहा गया है की स्नान करने के पश्च्यात भगवत सन्निधि में जाना चाहिये । शाण्डील्य ऋषी कहते है भगवत सन्निधि में जाते समय शुद्ध स्नान करके, ऊर्ध्वपुण्ड्र धारण करना, मंदिर में प्रवेश करते समय अपने पैरों को सफाई करना, पानी से आचमन करना, मन और शरीर को नियंत्रित करना, सुबह सूर्योदय के समय और शाम में तारों  के उदय के समय मंत्रानुसन्धान करना, ऐसे करते हुये भगवान के सन्निधि में पहुँचना । यहाँ पर रंगनाथ भगवान के श्रीचरणों की सेवा का उल्लेख किया गया है, जो कि पूर्ण तिरुवाराधन को दर्शाता है । वरवरमुनि स्वामीजी अरगंनगरप्प कि सेवा करते है जो कि रामानुज स्वामीजी को अत्यन्त प्रिय है, यहाँ पर रामानुज स्वामीजी के श्रीचरणों कि निष्ठा को भी हम अनुभव कर सकते है । जैसे शत्रुघ्नजी सदैव भरतजी की मुखोल्लास के लिये श्रीरामजी के बारे में स्मरण करते रहते थे ।

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