ज्ञान सारं – पासुर (श्लोक) २९

श्री:
श्रीमते शठकोपाय नम:
श्रीमते रामानुजाय नम:
श्रीमत् वरवरमुनये नम:

ज्ञान सारं

ज्ञान सारं – पासुर (श्लोक) २८                                                          ज्ञान सारं – पासुर (श्लोक) ३०

पाशुर-२९

lakshmi_narayan_py94_l

 

“मन्दिरमुम ईन्द गुरूवुम अम्मन्दिरत्ताल
सिन्दनै सैय्गिन्र तिरूमालुम – नन्दल इलादु
एन्रु अरूल परिवर यावर अवर इडरै
वेन्रु कडिदडैवर वीडु

सारांश :

यह पाशुर यह समझाता हैं कि कुछ गुणों के साथ लोगों का एक समुह हैं और यह सब लोग इस संसार बन्धन से छुट जायेंगे। इन लोगों का यह गुण हैं कि उन्हें आठ अक्षरों वालें मूलमंत्र (तिरुमन्त्र) पर पूर्ण विश्वास हैं और जिन्होंने उन्हें यह मूलमंत्र दिया हैं उन आचार्य पर उन्हें पूर्ण विश्वास हैं और उनका यह मत हैं कि मूलमंत्र “भगवान श्रीमन्नारायण” को ही समझाता हैं।

अर्थ:

मन्दिरमुम: मूलमंत्र (तिरुमन्त्र) | ईन्द गुरूवुम: आचार्य जिन्होंने सभी लोगों को मूलमंत्र (तिरुमन्त्र) दिया और | अम्मन्दिरत्ताल: मूलमंत्र का उद्देश / प्रेम | सिन्दनै सैय्गिन्र: जो बचाव करता हैं | नन्दल इलादु: लगातार / नित्य | तिरूमालुम: जो और कोई नहीं भगवान श्रीमन्नारायण हीं हैं | एन्रु: लोग जो इन तीनों के बारें में सोचते हैं वह हमेशा के लिये | अरूल परिवर: भगवान के सन्मुख हीं रहेंगे | यावर: ऐसे लोग | अवर: और ऐसे हीं लोग| इडरै वेन्रु: इस सांसारिक लड़ाई को जीत सकते हैं और | कडिद: जल्दी और | डैवर वीडु: भगवान श्रीमन्नारायण के तिरुमाली पहुँच जाते हैं जो कि परमपद हैं |

स्पष्टीकरण:

मन्दिरमुम: मन्त्र वह हैं जो इसे ना की निरन्तर कहता हैं परंतु उसके प्रति पूर्ण भाव रखता है उसकी रक्षा करता हैं । यहाँ “मन्त्र” को आठ अक्षरों वाले “मूलमंत्र” (तिरुमन्त्र) को दर्शाया गया हैं। तिरुमझिसै पिरान कहते “एत्तेझुतुम ओधुवार्गल वल्लार वानं आलवे।

ईन्द गुरूवुम: आचार्य जिन्होंने हमें मूलमंत्र (तिरुमन्त्र) दिया और सिखाया।

अम्मन्दिरत्ताल सिन्दनै सैय्गिन्र तिरूमालुम: व्यक्ति जिन्होंने यह तिरुमन्त्र दिया वह और कोई नहीं भगवान श्रीमन्नारायण हीं हैं।

नन्दल इलादु: “नन्दुधल” किसी को रोकना / तोड़ना यह दर्शाता हैं। अत: नन्दल इलादु यानि नित्य हैं।

एन्रु अरूल परिवर यावर: वह व्यक्ति जो उपर बताया हुआ “मूलमंत्र” (तिरुमन्त्र) को लेने वाला हैं, आचार्य जिन्होंने यह सिखाया हैं और तिरुमन्त्र का उद्देश और कुछ नहीं वह हीं भगवान श्रीमन्नारायण हैं।

अवर इडरै वेन्रु कडिदडैवर वीडु: वह व्यक्ति इस संसार बंधन से छुट जायेगा और उस स्थान पर जायेगा जहां हमेशा के लिये खुशी हैं जो और कुछ नहीं भगवान श्रीमन्नारायण कि तिरुमाली हैं। इस मोड पर मुमुक्षुपडि का सूत्र पढने के लिये बहुत सुन्दर हैं “मंतिरतिलुम मंतिरतुक्कू उल्लेदाना वस्तुविलुम मंतिर प्रधानां आचार्यं पक्कलिलुं प्रेमं गणक्का उंदानाल कार्य कर्मावधु”।

हिन्दी अनुवादक – केशव रामानुज दासन्

Source: http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2015/02/gyana-saram-29-mandhiramum-endha/
archived in http://divyaprabandham.koyil.org
pramEyam (goal) – http://koyil.org
pramANam (scriptures) – http://srivaishnavagranthams.wordpress.com
pramAthA (preceptors) – http://acharyas.koyil.org
srIvaishNava education/kids portal – http://pillai.koyil.org

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *