ज्ञान सारं – पासुर (श्लोक) २४

श्री:
श्रीमते शठकोपाय नम:
श्रीमते रामानुजाय नम:
श्रीमत् वरवरमुनये नम:

ज्ञान सारं

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पासुर – २४

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वण्डु पडि तुलब मार्बीनिडैच् सेय्द पिलै
उण्डु पल एन्रु उलम तलरेल – तोण्डर सेयुम
पल्लायिरम पिलैगल पार्त्तिरुन्दुम काणुम कण
इल्लादवन काण इरै

सार :

जब शास्त्र कर्मों के प्रकार के बारें में बातें करता हैं तो वह उसे तीन अलग श्रेणी में बाटता हैं। पूर्व कर्म, वर्तमान कर्म और भविष्यत कर्म। २३वें पाशुर में स्वामीजी देवराज मुनि ने पूर्व कर्मों के उपर केंद्रीत किया था। हालाकि इस पाशुर में वह वर्तमान कर्मों के बारें में बात कर रहे हैं।क्योकिं  हृदय को बहुत से कर्म करने के कारण बहुत दु:ख हैं इसीलिए वह सान्तवना देते हैं। वह और भी एक बात कहते हैं कि भगवान श्रीमन्नारायण जो उनके सच्चे भक्त बिना उनके विवेक के पालन करेंगे ऐसे कर्मों का खयाल नहीं करेंगे । भगवान उन कर्मों को देखेंगे लेकिन उसे ऐसे अंदेखा कर देंगे कि उन्होंने कुछ देखा ही नहीं हैं।

शब्दशः अर्थ :

वण्डु पडि तुलब मार्बीनिडै– कर्म जो हम भगवान के विरुद्ध करते हैं जिनके वक्षस्थल पर तुलसी (तिरुतुळाय्) की पुष्प माला हैं जो पूरी तरह कलियों से घीरा हैं, और जो मधु मख्खीयों से भरा हैं

चसेय्द पिलै उण्डु पल एन्रु उलम तलरेल – वह अनगिनत हैं जिससे हम डर भी सकते हैं परन्तु डरना नहीं है |

तोण्डर सेयुम पल्लायिरम पिलैगल पार्त्तिरुन्दुम – क्योंकि भगवान श्रीमन्नारायण ऐसे कौन से  भी कर्मों पर ध्यान नहीं देते हैं जो उनके सच्चे भक्त जन बिना ज्ञानता(अनजाने में) के करते हैं।

 काणुम कण इल्लादवन काण इरै – और ध्यान  भी  नहीं  देते  हैं जैसे  कि उन्होंने  कुछ  देखा ही नहीं जैसे कि एक अन्धा जिसे कुछ नहीं दिखाता।

वण्डु पडि तुलब मार्बीनिडैच् सेय्द पिलै: बुरे कर्म जो भागवान श्रीमन्नारायण कि और किया गया हैं जिन्होंने सुन्दर तुलसी (तिरुतुळाय्) की माला धारण कि हैं जो अनगिनत मख्खीयों को आकर्षित करती हैं और उसमें जो अमृत हैं वों पीने आते हैं। यहा हमारे मन में एक प्रश्न आता हैं कि क्यों स्वामी देवराज मुनि ने भागवान श्रीमन्नारायण को एक सुन्दर तुलसी की माला के साथ समझाया हैं। इसका कारण यह हैं कि भगवान हमेशा अपने आपको उस तरह सुन्दर बताते हैं जो उनके चरणों के शरण हुवें हैं। वें सब उनकी सुन्दरता में हमेशा के लिए डुब जाना चाहते हैं। एक बार वें सब भगवान शरण में हो गये फिर वें कभी भी वह कुछ भी नहीं करेंगे जो हम सोचे कि “बुरा” हैं। अगर उन्होंने उसे अनजाने में भी किया हो तो भी भगवान उसे नजर अंदाज कर देंगे। भगवान चाहते हैं कि एक बार हम उनकी शरण में हो गये उसके बाद हम उनकी सुंदरता का आनन्द ले। यह तथ्य समझाने के लिए ही भगवान अपने आप तुलसी की माला को सुन्दरता से धारण करते हैं।

उण्डु पल एन्रु  कोई भी भागवान श्रीमन्नारायण के पूरी तरह शरण हुआ हो, क्योंकि उसका शरीर पाँच इंद्रीयों द्वारा पूरी तरह नियंत्रण किया गया हैं उसे गलतीया करने का बहुत ज्यादा अवसर हैं। तिरुकुरल में कहा गया हैं कि “उरण एंड्रूम टोटियाल ओर ऐंधूम काप्पाण”। यह एक तुलना हैं जहाँ पाँच इंद्रियाँ को एक हाथी से और मन को नियंत्रण करनेवाली छड़ी से तुलना कि गयी हैं। इंद्रियों को नियंत्रण में करना बहुत कठीन हैं। आल्वार श्रीपरकाल स्वामीजी कहते हैं, “ऐवर अरुथु ठिंदृदा अंजी निं अंदैंधेन”। श्री शठकोप स्वामीजी कहते हैं, “उण्णिलाविय ऐवराल कुमैथ्ल्तृ”। क्योंकि यह इंद्रिया इस शरीर से जुडी हुई हैं इसिलीए शरणागति होने के पश्चात हम यह समझ सकते हैं कि किसी एक को गलति करने के लिए  इन पाँच इंद्रियों से अनगिनत मौके मिल सकते है। जब यह होता हैं तब उस व्यक्ति का मन उन गंभीर गलतीयों  के लिए जो उसने कि हैं कांपने लगाता हैं ।

उलम तलरेल:  इस तरह के मन के लिए यह पद इस तरह सान्त्वना देता हैं “हैं मन! चिंता मत करो ना ही कांपना!!! तमिल व्याकरण के अनुसार “उलम” शब्द “उल्लामे” का भाषान्तर हैं “मकरा लृ विलि वेतृमै” ।

तोण्डर सेयुम: तोण्डर भागवान श्रीमन्नारायण के भक्तों को संबोधित करता हैं। यहाँ इसका एक और भी मतलब हैं कि जो इंद्रियों के नियंत्रण और बंदुक कि नोक पर हैं और वह जो अब भी भागवान श्रीमन्नारायण के चरणों के शरण हैं। एक मतलब यह भी हैं कि वह जो भागवान श्रीमन्नारायण का दास हैं। अत: “तोण्डर सेयुम” पद उन सब भगवान श्रीमन्नारायण के भक्तों को संबोधित करता हैं जो अपने आप को भागवान श्रीमन्नारायण के ही दास समझते हैं।

पल्लायिरम पिलैगल:  इसका मतलब “अनगिनत गलतियाँ” हैं। अगर हमें यह गलतियाँ का कारण पहचानना हैं तो हम यह देख सकते हैं कि वह इस शरीर के कारण से हैं जो तीन प्रकार के गुणों से बाध्य हैं “सत्व गुण”, “रजो गुण” और “तमो गुण”।  यह तीन गुण मनुष्य में पवित्रता, ग़ुस्सा/क्रियाशीलता और निद्रा गुण बताता हैं। अविवेकता के कारण मनुष्य इसके प्रभाव और मेलजोल के वजह से रोजाना अनगिनत गलतियाँ करता हैं। “पिझै” का मतलब “पाप” या गलति हैं। अगर कोई व्यक्ति एक क्षण में कोई गलती करता हैं तो उस पाप को मिटाने के लिए हजारों और हजारों ब्रह्म वर्ष लग जाते हैं। यह जानना बहुत जरूरी है एक ब्रह्म वर्ष यानि मनुष्यों के अनेक महासंख वर्ष। अत: हम यह देख सकते हैं कि हमारे एक छोटी सी गलती का परिणाम मिटाना लगभग नामुमकिन हैं । जो कुछ गलतियाँ यहा बताई गयी हैं, वह कार्य करना जिसको शास्त्र ने  दोषयुक्त बताया है जैसे की, दूसरों को तकलीफ देना, दूसरों कि बढ़ाई करना, परस्त्री कि चाहना करना, दूसरों के धन की चाहना करना, झूठ बोलना और वह खाना जो हमारे लिए निषेध हैं। दूसरे वर्ग कि गलतियाँ जो नहीं करना हैं जिसे शास्त्र में बताया हैं, वह हैं भगवत अपचार करना यानि भगवान श्रीमन्नारायण की अन्य देवी-देवताओं के साथ तुलना करना, भगवान के अवतारों में दोष देखना, भगवान का विग्रह किस धातु से बना हैं इसकी खोज करना, अधुरी पुजा, पुजा के पात्र चुराना, जो चोरी कर रहा हैं उसकी मदद करना, चुराई हुई वस्तु को माँग कर या धमका कर लेना, आदि। अगर कोई भागवत अपचार करता हैं तो वह भी गलतीयों में गिना जायेगा।

 इरै पार्त्तिरुन्दुम काणुम कण:  भागवान श्रीमन्नारायण वह हैं जो सब में हैं और जो कुछ भी हो रहा हैं वह सब कुछ जानते भी हैं। ऐसे भागवान श्रीमन्नारायण हैं जो अपने सच्चे भक्तों के उनकी पूर्णता शरणागति होने पर उनके अनगिनत दोषों को नहीं देखते हैं जो उन्होंने किया हैं, वह ऐसे रहते हैं जैसे कि उन्होंने कुछ देखा ही नहीं। यहाँ “कण” का मतलब ज्ञान हैं।

इल्लादवन काण : जैसे हमने पहिले देखा कि “कण” का मतलब ज्ञान हैं और यहां इसका मतलब “वह जिसको कोई ज्ञान नहीं हैं”। इसलिए भागवान श्रीमन्नारायण अपने भक्तों के ज्ञान के बारें में सतर्क रहते हैं। पिछले प्रकरण में “इरै” का मतलब “एक छोटी संख्या” भी हैं। इससे यह पता चलता हैं कि भगवान अपने भक्तों कि गलतियाँ के उपर थोड़ा सा भी ध्यान नहीं देते हैं। वह उनकी गलतियों को पूरी तरह नजर अंदाज़ कर देते हैं। यह विष्णु सहस्त्र नाम स्तोत्र में इस श्लोक में समझाया गया हैं “अविज्ञात”। इस पासुर का अर्थ है कि हमें शरणागति ग्रहण करने के बाद डरने कि कोई भी जरूरत नहीं है | भगवान् श्रीमन्नारायण इन गलतियों / कार्यों पर अनभिज्ञता नहीं दिकायेंगे अर्थात् इन पर ज्यादा ध्यान नहीं देंगे

हिन्दी अनुवादक – केशव रामानुज दासन्

Source: http://divyaprabandham.koyil.org/index.php/2015/02/gyana-saram-24-vandu-padi-thulaba/
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